म्हारा घडी रे घडी रा रिछपाल सिमरु बाबा बजरंग ने।

टेर : म्हारा घडी रे घडी रा रिछपाल सिमरु बाबा बजरंग ने। थर थावर थारी करूं थरपना मंगल वारि भेंट, घृत चूरमो चढ़ा स्यूं बाबा आके सालासर थारे ठेठ। म्हारा घडी रे….. बालक पन में खेलत खेलत सूरज पकड्यो जाये, देवन आय कृ विनती तो मुख से दिया छिटकाय। म्हारा घडी रे….. सीता की सुध लें पधारे अंजनी सूत हनुमान, लंका जाये राख कर दीन्हि मारयो है अक्षय कुमार। म्हारा घडी रे….. कछ्मण के जब शक्ति लागी गिरयो धरण गम खाय, लाय सरजीवन घोल पिलाई जगे वीर महान। म्हारा घडी रे….. लछमन राम चुरा कर लेग्या अहिरावण निज धाम, ताहि समय बाबा सहाय करी है लायो है लछमन राम। म्हारा घडी रे….. बड़े बड़े कारज कर डारे थे अंजना के लाल, देवकी नंदन सहाय करो रे बेड़ो लंघाओं पार। म्हारा घडी रे…..

साईं चालीसा / चालीसा

पहले साईं के चरणों में, अपना शीश नवाऊँ मैं।
कैसे शिर्डी साईं आए, सारा हाल सुनाऊँ मैं।। (1)
कौन हैं माता, पिता कौन हैं, यह न किसी ने भी जाना।
कहाँ जनम साईं ने धारा, प्रश्न पहेली रहा बना ।। (2)
कोई कहे अयोध्या के, ये रामचंद्र भगवान है।
कोई कहे साईं बाबा, पवन पुत्र हनुमान हैं।। (3)
कोई कह्ता मंगलमूर्ति, श्री गजानन हैं साईं।
कोई कह्ता गोकुल मोहन-देवकी नंदन है साईं।। (4)
शंकर समझ भक्त कई तो, बाबा को भजते रहते।
कोई कहे अवतार दत्त का, पूजा साईं की करते।। (5)
कुछ भी मानो उनको तुम, पर साईं है सच्चे भगवान।
बडे दयालु, दीनबंधु, कितनो को दिया जीवनदान।। (6)
कई वर्ष पहले की घटना, तुम्हें सुनाऊँगा मैं बात।
किसी भाग्यशाली की, शिर्डी में आई थी बारात।। (7)
आया साथ उसी के था, बालक एक बहुत सुंदर।
आया, आकार वहीं बस गया, पावन शिर्डी किया नगर।। (8)
कई दिनों तक रहा भटकता, भिक्षा माँगी उसने दर-दर।
और दिखाई ऐसी लीला, जग में जो हो गई अमर।। (9)
जैसे-जैसे उमर बढी, वैसे ही बढती गई शान।
घर-घर होने लगा नगर में, साईंबाबा का गुणगान।। (10)
दिग दिगंत में लगा नगर में, फिर तो साईं जी का नाम।
दीन-दुखी की रक्षा करना, यही रहा बाबा का काम।। (11)
बाबा के चरणों में जाकर, जो कहता मैं हूँ निर्धन।
दया उसी पर होती उनकी, खुल जाते दुःख के बंधन।। (12)
कभी कीसी ने माँगी भिक्षा, दो बाबा मुझको संतान।
एवमस्तु तब कहकर साईं, देते थे उसको वरदान।। (13)
स्वयं दुःखी बाबा हो जाते, दीन-दुखीजन का लख हाल।
अंतःकरन श्री साईं का, सागर जैसा रहा विशाल।। (14)
भक्त एक मद्रासी आया, घर का बहुत बड़ा धनवान।
माल ख़ज़ाना बेहद उसका, केवल नहीं तो बस संतान।। (15)
लगा मनाने साईं नाथ को, बाबा मुझ पर दया करो।
झंझा से झंकृत नैया को, तुम्ही मेरी पार करो।। (16)
कुलदीपक के बिना अंधेरा, छाया हुआ है घर में मेरे।
इसलिए आया हूँ बाबा, होकर शरणागत तेरे।। (17)
कुलदीपक के इस अभाव में, व्यर्थ है दौलत की माया।
आज भिखारी बन कर बाबा, शरण तुम्हारी मैं आया।। (18)
दे दो मुझको पुत्र दान, मैं ऋणी रहुँगा जीवन भर।
और किसी की आस न मुझको, सिर्फ़ भरोसा है तुम पर।। (19)
अनुनय-विनय बहुत की उसने, चरणों में धर कर के शीश।
तब प्रसन्न होकर बाबा ने, दिया भक्त को यह आशीष।। (20)
अल्ला भला करेगा तेरा, पुत्र जन्म हो तेरे घर।
कृपा रहेगी तुझ पर उसकी, और तेरे उस बालक पर।। (21)
अब तक नहीं किसी ने पाया, साईं की कृपा का पार।
पुत्र रत्न दे मद्रासी को, धन्य किया उसका संसार।। (22)
तन-मन से जो भजे उसी का, जग में होता है उद्धार।
साँच को आँच नहीं है कोई, सदा झूठ की होती हार।। (23)
मैं हूँ सदा सहारे उसके, सदा रहूँगा उसका दास।
साईं जैसा प्रभु मिला है, इतनी ही कम है क्या आस।। (24)
मेरा भी दिन था एक ऐसा, मिलती नहीं थी मुझे भी रोटी।।
तन से कपडा दूर रहा था, शेष रही थी नन्ही सी लंगोटी।। (25)
सरिता सन्मुख होने पर भी, मैं प्यासा का प्यासा था।
दुर्दिन मेरा मेरे उपर, दावाग्नि बरसाता था।। (26)
धरती के अतिरिक्त जगत में, मेरा कुछ अवलम्बन न था।
बना भिखारी मैं दुनिया मैं, दर-दर ठोकर खाता था।। (27)
ऐसे में इक मित्र मिला जो, परम भक्त साईं का था।
जंजालो से मुक्त, मगर इस, जगत में वह भी मुझसा था।। (28)
बाबा के दर्शन के खातिर, मिल दोनो ने किया विचार।
साईं जैसे दयामूर्ति के, दर्शन को हो गये तैयार।। (29)
पावन शिर्डी नगरी में जाकर, देखी मतवाली मुरति।
धन्य जनम हो गया कि हमने, जब देखी साईं की सूरति।। (30)
जब से किए है दर्शन हमन, दुःख सारा काफ़ूर हो गया।
संकट सारे मिटे और, विपदाओ का हो अंत गया।। (31)
मान और सम्मान मिला, भिक्षा में हमको बाबा से।
प्रतिबिम्बित हो उठे जगत में, हम साईं की आभा से।। (32)
बाबा ने सम्मान दिया है, मान दिया इस जीवन में।
इसका ही सम्बल ले मैं, हंसता जाऊँगा जीवन में।। (33)
साईं की लीला का मेरे, मन पर ऐसा असर हुआ।
लगता, जगत के कण-कण में, साईं हो बसा हुआ।। (34)
काशीराम भक्त बाबा का, इस शिर्डी में रहता थ।
मैं साईं का, साईं मेरा, वह दुनिया से कहता थ।। (35)
सींकर स्वंय वस्त्र बेचता, ग्राम-नगर बाज़ारों में।
झंकृत उसकी हदय तंत्री थी, साईं की झन्कारों से।। (36)
स्तब्ध निशा थी, थे सोये, रजनी अंचल में चाँद सितारे।
नहीं सूझता वहां हाथ को हाथ तिमिर के मारे ।। (37)
वस्त्र बेचकर लौट रहा था, हाय! हाट से काशी।
विचित्र बड़ा संयोग कि उस दिन, आता था वह एकाकी।। (38)
घेर राह में खडे हो गये, उसे कुटिल, अन्यायी।
मारो काटो लूटो इसकी, ही ध्वनि पडी सुनाई।। (39)
लुट पीट कर उसे वहाँ से, कुटिल गये चम्पत हो।
आघातो से मर्माहत हो, उसने दी थी संज्ञा खो।। (40)
बहुत देर तक पडा रहा वह, वहीं उसी हालत में।
जाने कब कुछ होश हो उठा, उसको किसी पलक में।। (41)
अनजाने ही उसके मुहँ से, निकल पडा था साईं।
जिसकी प्रतिध्वनि शिर्डी में, बाबा को पडी सुनाई।। (42)
क्षुब्ध हो उठा मानस उनका, बाबा गये विकल हो।
लगता जैसे घटना सारी, घटी उन्हीं के सम्मुख हो।। (43)
उन्मादी से इधर उधर तब, बाबा लगे भटकने।
हुए सशंकित सभी वहाँ, देख ताण्डव नृत्य निराला।। (45)
समझ गये सब लोग कि कोई, भक्त पडा संकट में।
क्षुभित खडे थे सभी वहाँ पर, पडे हुए विस्मय में।। (46)
उसे बचाने की ही खातिर, बाबा आज विकल हैं।
उसकी ही पीडा से पीडित उनका अंतःस्तल है।। (47)
इतने में ही विधि ने अपनी, विचित्रता दिखलाई।
देख कर जिसको जनता की, श्रद्धा सरिता लहराई।। (48)
लेकर संज्ञाहीन भक्त को, गाडी एक वहाँ आई।
सन्मुख अपने देख भक्त को, साईं की आँखे भर आई।। (49)
शांत, धीर, गम्भीर सिंधु-स, बाबा का अंतःस्तल।
आज न जाने क्यों रह-रह कर, हो जाता था चंचल।। (50)
आज दया की मूर्ति स्वयं था, बना हुआ उपचारी।
और भक्त के लिए आज था, देव बना प्रतिहारी।। (51)
आज भक्ति की विषम परीक्षा में, सफल हुआ था काशी।
उसके ही दर्शन के खातिर, उमडे थे नगर-निवासी।। (52)
जब भी और जहाँ भी कोई, भक्त पडे सकंट में।
उसकी रक्षा करने बाबा, जाते हैं पल भर में।। (53)
युग-युग का है सत्य यही, नहीं कोई नयी कहानी।
आपद्ग्रस्त भक्त जब होता, जाते खुद अंतर्यामी।। (54)
भेद-भाव से परे पुजारी, मानवता के थे साईं।
जितने प्यारे हिन्दु-मुस्लिम, उतने ही थे सिक्ख-ईसाई।। (55)
भेद-भाव, मन्दिर-मस्जिद का, तोड़-फोड़ बाबा ने डाला।
राम रहीम सभी उनके थे, कृष्ण, करीम अल्लाताला।। (56)
घण्टे की प्रतिध्वनि से गूँजा, मस्जिद का कोना-कोना।
मिले परस्पर हिन्दु-मुस्लिम, प्यार बढा दिन-दिन दूना।। (57)
चमत्कार था कितना सुंदर, परिचय इस काया ने दी।
और नीम की कड़वाहट में भी, मिठास बाबा ने भर दी।। (58)
सब को स्नेह दिया साईं ने, सबको संतुल प्यार किया।
जो कुछ जिसने भी चाहा, बाबा ने उसको वही दिया।। (59)
ऐसे स्नेह शील भाजन का, नाम सदा जो जपा करे।
पर्वत जैसा दुःख क्यों न हो, पलभर में वह दूर करे।। (60)
साईं जैसा दाता हमने, अरे! नहीं देखा कोई।
जिसके केवल दर्शन से ही, सारी विपदा दूर गई।। (61)
तन में साईं, मन में साईं, साईं-साईं भजा करो।
अपने तन की सुधि-बुधि खोकर, सुधि उसकी तुम किया करो।। (62)
जब तुम अपनी सुधियाँ तजकर, बाबा की सुधि किया करेगा।
और रात दिन बाबा, बाबा, बाबा ही तू रटा करेगा।। (63)
तो बाबा को अरे! विनश हो, सुधि तेरी लेनी ही होगी।
तेरी हर इच्छा बाबा को, पूरी ही करनी होगी।। (64)
जंगल-जंगल भटक न पागल, और ढूंढने बाबा को।
एक जगह केवल शिर्डी में तूं पायेगा बाबा को ।। (65)
धन्य जगत के प्राणी है वह, जिसने बाबा को पाया।
दुःख में सुख में प्रहर आठ हो, साईं का ही गुण गाया।। (66)
गिरें संकटों के पर्वत, चाहे बिजली ही टूट पडे।
साईं का ले नाम सदा तुम, सन्मुख सब के रहो अडे।। (67)
इस बूढे की सुन करामात, तुम हो जाओगे हैरान।
दंग रह गये सुन कर जिसको, जाने कितने चतुर सुजान।। (68)
एक बार शिर्डी में साधु, ढोंगी था कोई आया।
भोली-भाली नगर-निवासी, जनता को था भरमाया।। (69)
जडी-बूटियाँ उन्हें दिखा कर, करने लगा वहाँ भाषण।
कहने लगा सुनो श्रोतागण, घर मेरा है वृन्दावन।। (70)
औषधि मेरे पास एक है, और अजब इसमें शाक्ति।
इसके सेवन करने से ही, हो जाती हर दुःख से मुक्ति।। (71)
अगर मुक्त होना चाहो तुम, संकट से बीमारी से।
तो है मेरा नम्र निवेदन, हर नर से हर नारी से।। (72)
लो ख़रीद तुम इसकी, सेवन विधियाँ है न्यारी।
यद्यपि तुच्छ वस्तु है यह, गुण इसके हैं अतिशय भारी।। (73)
जो हैं संतति हीन यहाँ यदि, मेरी औषधि को खायें।
पुत्र रत्न हो प्राप्त, अरे और वह मुहँ माँगा फल पायें।। (74)
औषधि मेरी जो न ख़रीदे, जीवन भर पछ्तायेगा।
मुझ जैसा प्राणी शायद ही, अरे यहाँ आ पायेगा।। (75)
दुनिया दो दिन मेला है, मौज शोक तुम भी कर लो।
अगर इससे मिलता है सब कुछ, तुम भी इसको ले लो।। (76)
हैरानी बढ्ती जनता की, देख इसकी कारस्तानी।
प्रमुदित वह भी मन ही मन था, देख लोगों की नादानी।। (77)
खबर सुनाने बाबा को यह, गया दौडकर सेवक एक।
सुनकर भृकुटी तनी और, विस्मृत हो गया सभी विवेक।। (78)
हुक्म दिया सेवक को, सत्वर पकड़ दृष्ट को लाओ।
या शिरडी की सीमा से, कपटी को दूर भगाओ।। (79)
मेरे रह्ते भोली-भाली, शिरडी की जनता को।
कौन नीच ऐसा जो, साहस करता है छलने को।। (80)
पलभर में हि ऐसे ढोंगी, कपटी, नीच, लुटेरे को।
महानाश के महागर्त में, पहुँचा दूँ जीवन भर को।। (81)
तनिक मिला आभास मदारी, क्रूर, कुटिल, अन्यायी को।
काल नाचता है अब सिर पर, गुस्सा आया साईं को।। (82)
पलभर में सब खेल बंद कर, भागा सिर पर रखकर पैर।
सोच रहा था मन ही मन, भगवान नहीं है क्या अब खैर।। (83)
सच है साईं जैसा दानी, मिल न सकेगा जग में।
अंश ईश का साईं बाबा, उन्हें न कुछ भी मुश्किल जग में।। (84)
स्नेह, शील, सौजन्य आदि का, आभुषण धारण कर।
बढता इस दुनिया में जो भी, मानव-सेवा के पथ पर।। (85)
वही जीत लेता है जगती के, जन-जन का अंतःस्तल।
उसकी एक उदासी ही जग, को कर देती है विहल।। (86)
जब-जब जग में भार पाप का, बढता ही जाता है।
उसे मिटाने के ही खातिर, अवतारी हो आता है।। (87)
पाप और अन्याय सभी कुछ, इस जगती का हर के।
दूर भागा देता दुनिया के, दनाव को क्षण भर में।। (88)
स्नेह सुधा की धार बरसने, लगती हैं दुनिया में।
गले परस्पर मिलने लगते, है जन-जन आपस में।। (89)
ऐसे ही अवतारी साईं, मृत्यु लोक में आ कर।
समता का पाठ पढाया, सबका अपना आप मिटाकर।। (90)
नाम द्रारका मस्जिद का, रक्खा शिरडी में साईं ने।
दाप, ताप, सन्ताप मिटाया, जो कुछ आया साईं ने।। (91)
सदा याद में मस्त राम की, बैठे रह्ते थे साईं।
पहर आठ ही राम नाम का, भजते रह्ते थे साईं।। (92)
सूखी-रुखी, ताजी-बासी, चाहे या होवे पकवान।
सदा प्यार के भूखे साईं सबके, खातिर एक समान।। (93)
स्नेह और श्रद्धा से अपनी, जन जो कुछ दे जाते थे।
बडे चाव से उस भोजन को, बाबा पावन करते थे।। (94)
कभी-कभी मन बहलाने को, बाबा बाग़ में जाते थे।
प्रमुदित मन में, निरख प्रकृति, आनंदित वे हो जाते थे।। (95)
रंग-बिरंगे पुष्प बाग़ के, मंद-मंद हिल-डुल करके।
बीहड़ वीराने मन में भी, स्नेह सलिल भर जाते थे।। (96)
ऐसी सुमधुर बेला में भी, दुःख, आपद, विपदा के मारे।
अपने मन की व्यथा सुनाने, जन रह्ते बाबा को घेरे।। (97)
सुनकर जिनकी करुणा कथा को, नयन कमल भर आते थे।
दे विभुति हर व्यथा शांति, उनके उर में भर देते थे।। (98)
जाने क्या अदभुत शाक्ति, उस विभुति में होती थी।
जो धारण करते मस्तक पर, दुःख सारा हर लेती थी।। (99)
धन्य मनुज वे साक्षात दर्शन, जो बाबा साईं के पाये।
धन्य कमल कर उनके जिनसे, चरण-कमल वे परसाये।। (100)
काश निर्भय तुमको भी, साक्षात साईं मिल जाता।
वर्षों से उजडा चमन अपना, फिर से आज खिल जाता।। (101)
गर पकडता मैं चरण श्री के, नहीं छोंडता उम्र भर।
मना लेता मैं जरुर उनको, गर रुठते साईं मुझ पर।। (102)

Comments

Popular posts from this blog

बजरंग बाला जय हो बजरंग बाला, पाँव में घुंगरू बांध के नाचे,

जय जय गिरिराज किसोरी jai jai giriraj kishori jai mahesh mukh chand chakori bhawani bhajan from ramayan

ऐसी लागी लगन मीरा हो गयी मगन aisi laagi lagan meera ho gayi magan

छम छम नाचे वीर हनुमान cham cham nache dekho veer hanumana

निर्धन के घर भी आ जाना labhi fursat ho to jagdambe nirdhan ke ghar bhi aa jaana

श्री राम जानकी बैठे हैं मेरे सीने मैं shree ram janki baithe hain mere seene me

मीठे रस से भरी रे राधा रानी लागे meethe ras se bhari raadha raani laage

आ लौट के आजा हनुमान तुम्हे श्री राम बुलाते हैं aa laut ke aaja hanuman tumheshree ram bulate hain

राम नाम के हीरे मोती मैं बिखराऊं गली गली raam naam ke heere moti main bikhraaun gali gali

रिंग्टोन Ringtone Lyrics hindi – Preetinder