चैत बैसाख बीतल दुइ फूल लागल अकास
जेठमे रिमझिम पड़ै छै फुहार गे, करबै हम विहार गे ना
अषाढ़ साओन बीतल, दुइ मास बरखा बरसै दिन राति
आनन्दसँ पलंगा पर गद्दा ओछायब गे, करबै हम विहार गे ना
आसिन आशा हम लगौलियै, कातिक किछु नहि केलिऐ
अगहन खेपबै बैसिकऽ दुआरि गे, करबै हम विहार गे ना
पूस सीरक भरायब, माघमे पिया के ओढ़ायब
फागुन छोड़बै अतर गुलाल गे, करबै हम विहार गे ना
पुरि गेलै बारह मास गे, करबै हम विहार गे ना
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