निज कय गेला बुझाय
से दिन आबि तुलायल सजनी गे
धैरज धयल ने जाय
अति आकुल भेलि पहु बिनु सजनी गे
सुन्दरि अति सुकुमारि
अकछि हिया पथ हेरथि सजनी गे
अजहु ने आयल मुरारि
खन-खन मदन दहो दिस सजनी गे
विरह उठय तन जागि
से दुख काहि बुझायब सजनी गे
बैसब ककर लग जागि
हरि गुण सुमिरि विकल भेल सजनी गे
के बूझत दुख मोर
विद्यापति कवि गाओल सजनी गे
अयला नन्द किशोर
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