Friday, November 1, 2024

आसिन मास गे कनियाँ / मैथिली लोकगीत संग्रहकर्ता

आसिन मास गे कनियाँ, निसि अन्धी राति
निशिए सपन गे कनियां, बदन तोहार
झुठे तो बजइ छऽ हो कुमर, झुठे तोहर सपन
जे तोरा कहलक हो कुमर, लड़िका छल नदान
कातिक मास गे कनियां, कन्त भेलौ उरन्त
स्वामी तोहर डूबि जे मरलौ, कंकरपुर के धार
हमरो के स्वामी जे मरितै, फुटितै गजमोती
जल थल नदिया हो कुमर, बहितै सिनुरक धार
अगहन मास गे कनियां, शोभउ ने गुदरी-पुरान
पहिरूमे पहिरू गे कनियां, लहंगा हे पटोर
एते दिन पहिरलौं हो कुमर, लहंगा हे पटोर
आब हमरा शोभइ हो कुमर, गुदरी हे पुरान
पूसहिं मास हे कनियां, जाड़क दिन
हमरो के कनियां रहितै, सीरक दितौं भराइ
पूसहि मास हो कुमर, जाड़क दिन
हमरो के स्वामी रहितय, अचरा दितौं ओढ़ाइ
माघहि मास गे कनियां, ओस लागल कपार
हमरो के कनियां रहितै, औखद दितै लगाइ
माघ मास हो कुमर, जाड़क दिन
हमरो के स्वामी रहितै, हाथसँ दितौं दबाइ
फागुन मास गे कनियां, होली के दिन
हमरो के कनियां रहितय, धोरितौं रंग-अबीर
फागुन मास हो कुमर, होली के दिन
हमरो के स्वामी रहितय, खेलितौं रंग-अबीर
चैतहि मास गे कनियां, फूलय बंगटेस
फूल फूलिय गेल गे कनियां, बदन तोहार
एते दिन कहलऽ तहूँ, छलऽ अज्ञान
आब किछु बजबऽ हो कुमर, पिता के पढ़बऽ गारि
बैसाख मास गे कनियां, गरमी के दिन
हमरो के कनियां रहितय, बेनियां दितै डोलाय
बैशाख मास हो कुमर, गरमी के दिन
हमरो के स्वामी रहितय, अंचरा दितौं घुमाय
जेठ मास गे कनियां, अन्हड़ गे बिहारि
स्वामी तोहर डूबि मरलौ, कंकरपुर के धार
झूठ तोँ बजै छऽ हो कुमर, झूठ तोहर बात
हमरो के स्वामी मरितै, फुटितै गज मोतीहार
जल थल नदिया हो कुमर, बहितै सिनुरक धार
अखाढ़हि मास गे कनियां, बंगला रचि छरायब
हमरो के कनियां रहितय, कहितौं सबरंग बात
अखाढ़ मास हो कुमर, खिड़की रचि कटायब
हमरो के स्वामी रहितय, करितौं सबरंग प्यार
साओन मास गे कनियां, झूला के दिन
हमरो के कनियां जे रहितै, झूला लितौं लगाय
साओन मास हो कुमर, झुला के दिन
हमरो के स्वामी रहितय, झूला दितौं झुलाय
भादव मास गे कनियाँ, निसि अन्धी राति
आसिन मास गे कनियां, पूरलौ बारहमास
तइयो नै चिन्हले गे कनियां, स्वामी अपन
कोने रंग भइया हो, कोने रंग बहीन
कोने रंग परदेशिया हो कुमर, चिन्हलौं ने अपन
गोरे रंग भइया हो कनियां, गोरे रंग बहीन
श्यामल रंग परदेशिया कनियां, चिन्हले ने अपन

No comments:

Post a Comment

Featured post

यूँही बे-सबब न फिरा करो कोई शाम घर में रहा करो Yunhi Be-Sabab Na Fira Karo Koi Bashir Badr Ghazal

यूँही बे-सबब न फिरा करो कोई शाम घर में रहा करो वो ग़ज़ल की सच्ची किताब है उसे चुपके चुपके पढ़ा करो कोई हाथ भी न मिलाएगा जो गले मिलोगे तपाक स...