भादव भरि गेल ताल चहुदिस, आयल नहि चितचोर
बिदेशिया मनमोहन रे की
आसिन आस लगाओल सभ क्यो, औता नन्द किशोर
कातिक कन्त कला नहि मानय, करबमे ककर निहोर
बिदेशिया मनमोहन रे की
अगहन आय मिले हे उधोजी, कुबजी सौतिन भेल मोर
पूस पलटि नहि आयल मोहन, वंशी सौतिन भेल मोर
बिदेशिया मनमोहन रे की
माघ कियो एक पत्र सभ मीलय, गोकुल मचि गेल शोर
फागुन जोगिन हुनहुँ सँ बढ़ि कय, कते दिन रहब बिजोर
बिदेशिया मनमोहन रे की
चैत हे सखि कानल मुद्रा, झरकि भसम तन मोर
मास बैसाख जटा नहि आयल, माला बनल केश मोर
बिदेशिया मनमोहन रे की
जेठ कियो जग, जाग सभे मिल, आयल कठिन घनघोर
ककर नारी अखाढ़ मे बाला, मृग छाला अति कठोर
बिदेशिया मनमोहन रे की
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