हे रघुनन्दन विश्वम्भर स्वामी / मैथिली लोकगीत

हे रघुनन्दन विश्वम्भर स्वामी, कारण कओने फिरय वन मे
साओन सहृदय कियो राजा दशरथ, हर्ष भई कैकेइ मन मे
विकल भेल नर-नारी अवध मे, रोदना करथि जननि घर मे
भादव मास ठाढ़ रघुवर तरुतर, वुन्दक झाड़ लागय तन मे
निशि अन्हार अति भयाओन, दामिनि दमकि रहल घन मे
आसिन राम चलल मृग मारन, सीता सौंपल लखन संग मे
मुरछि खसू मृग राम शर पीड़ित, शब्द सुनल सिय कानन मे
कातिक कठिन भूप अति रावण, सिया हरल ओहि अवसर मे
शम्भुदास करुणा रस सखि हे, भरत जाय पुर-परिजन मे

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