चैत चकोर समान सखि रे, मालती आशा लेल कर मे
नित नव सुरति निरेखू रघुवर के, पलको ने लागय मोर नयन मे
आयल बैसाख सकल पुर-परिजन, औल पड़य तन-मन मे
चानन अतर गुलाब काछि कय, सींचय प्रभुजी के गातन मे
जेठ मास भरि कनक कटोरी, लय मिश्री पकवानन मे
रुचि रुचि भोजन करू रघुनन्दन, बिजुरी छिटकि रहू दांतना मे
आयल अषाढ़ घेरि घन बदरी, पवन बहय पुरिबाहन मे
दान देहू रनिवास राजा मिलि, प्रेमलाल हरषे मन मे
No comments:
Post a Comment