आइ अषाढ़ मास हे सखिया, चहु दिस बुन्द बरसे दिन रतिया
विषम लागे
साओन के दुखदाओन रतिया, कुबजी हरकनि हुनको मतिया
विषम लागे
भादव के निशि राति अन्हरिया, सपनो मे देखल हुनकर सुरतिया
विषम लागे
आसिन आस लगाओल सखिया, नहि आयल पिया निरमोहिया
विषम लागे
कातिक कंत उरन्त भेल सखिया, सिन्दूर-काजर ने शोभय सुरतिया
विषम लागे
अगहन अग्र सोहावन सखिया, सारिल धान कटायब कहिया
विषम लागे
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