फागुन मास आस हिय सालय, फड़कि-फड़कि उठय छतिया
केओ नहि मोर विपत्ति केर संगी, अगहन लिखि भेजु पतिया
चैत मास वन टेसू फूलय, मोहि ने भावय घर-अंगना
कोइली कुहुकि-कुहकि हिया सालय, होअय मन जा डूबी यमुना
ठाढ़ बैसाख तोहें होउ बटोही, तोहें देह-दशा मोरा देखू हे
जाय कहू ओहि नटबर श्याम सँ, विरहिन प्राण नहि राखू हे
जेठ मास पिया वारी सोहागिन, चानन अंग लेपू घसि के
भेटलथि श्याम सखा मोरो स्वामी, मन अभिलाष पूरय सभ के
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