Monday, November 4, 2024

Durga Kavach Lyrics Hindi - श्री दुर्गा कवच हिंदी


श्री दुर्गा कवच हिंदी एवं संस्कृत दोनों में उपलब्ध है यहाँ पहले संस्कृत में दुर्गा कवच लिखा गया है तत्पश्चात निचे दुर्गा कवच हिंदी में अर्थ दिया  है यदि कोई पाठकगण हिंदी ही समझना चाहता है तो वह सीधा स्क्रॉल करके निचे से दुर्गा कवच हिंदी में समझ सकता है 

 ॥अथ श्री देव्याः कवचम्॥


ॐ अस्य श्रीचण्डीकवचस्य ब्रह्मा ऋषिः, अनुष्टुप् छन्दः,
चामुण्डा देवता, अङ्गन्यासोक्तमातरो बीजम्, दिग्बन्धदेवतास्तत्त्वम्,
श्रीजगदम्बाप्रीत्यर्थे सप्तशतीपाठाङ्गत्वेन जपे विनियोगः ।

ॐ नमश्‍चण्डिकायै ॥

मार्कण्डेय उवाच
ॐ यद्गुह्यं परमं लोके सर्वरक्षाकरं नृणाम्।
यन्न कस्यचिदाख्यातं तन्मे ब्रूहि पितामह॥

ब्रह्मोवाच


अस्ति गुह्यतमं विप्र सर्वभूतोपकारकम्।
देव्यास्तु कवचं पुण्यं तच्छृणुष्व महामुने॥

प्रथमं शैलपुत्री च द्वितीयं ब्रह्मचारिणी।
तृतीयं चन्द्रघण्टेति कूष्माण्डेति चतुर्थकम् ॥

पञ्चमं स्कन्दमातेति षष्ठं कात्यायनीति च।
सप्तमं कालरात्रीति महागौरीति चाष्टमम्॥

नवमं सिद्धिदात्री च नवदुर्गाः प्रकीर्तिताः।
उक्तान्येतानि नामानि ब्रह्मणैव महात्मना॥

अग्निना दह्यमानस्तु शत्रुमध्ये गतो रणे।
विषमे दुर्गमे चैव भयार्ताः शरणं गताः॥

न तेषां जायते किंचित शुभं रणसंकटे।
नापदं तस्य पश्यामि शोकदुःखभयं न हि॥

यैस्तु भक्त्या स्मृता नूनं तेषां वृद्धिः प्रजायते।
ये त्वां स्मरन्ति देवेशि रक्षसे तान्न संशयः॥

प्रेतसंस्था तु चामुण्डा वाराही महिषासना।
ऐन्द्री गजसमारुढा वैष्णवी गरुडासना॥

माहेश्‍वरी वृषारुढा कौमारी शिखिवाहना।
लक्ष्मीः पद्मासना देवी पद्महस्ता हरिप्रिया॥

श्‍वेतरुपधरा देवी ईश्‍वरी वृषवाहना।
ब्राह्मी हंससमारुढा सर्वाभरणभूषिता॥

इत्येता मातरः सर्वाः सर्वयोगसमन्विताः।
नानाभरणशोभाढ्या नानारत्नोपशोभिताः॥

दृश्यन्ते रथमारुढा देव्यः क्रोधसमाकुलाः।
शङ्खं चक्रं गदां शक्तिं हलं च मुसलायुधम्॥

खेटकं तोमरं चैव परशुं पाशमेव च।
कुन्तायुधं त्रिशूलं च शार्ङ्गमायुधमुत्तमम्॥

दैत्यानां देहनाशाय भक्तानामभयाय च।
धारयन्त्यायुधानीत्थं देवानां च हिताय वै॥

नमस्तेऽस्तु महारौद्रे महाघोरपराक्रमे।
महाबले महोत्साहे महाभयविनाशिनि॥

त्राहि मां देवि दुष्प्रेक्ष्ये शत्रूणां भयवर्धिनि।
प्राच्यां रक्षतु मामैन्द्री आग्नेय्यामग्निदेवता॥

दक्षिणेऽवतु वाराही नैर्ऋत्यां खड्गधारिणी।
प्रतीच्यां वारुणी रक्षेद् वायव्यां मृगवाहिनी॥

उदीच्यां पातु कौमारी ऐशान्यां शूलधारिणी।
ऊर्ध्वं ब्रह्माणि मे रक्षेदधस्ताद् वैष्णवी तथा॥

एवं दश दिशो रक्षेच्चामुण्डा शववाहना।
जया मे चाग्रतः पातु विजया पातु पृष्ठतः॥

अजिता वामपार्श्वे तु दक्षिणे चापराजिता।
शिखामुद्योतिनि रक्षेदुमा मूर्ध्नि व्यवस्थिता॥

मालाधरी ललाटे च भ्रुवौ रक्षेद् यशस्विनी।
त्रिनेत्रा च भ्रुवोर्मध्ये यमघण्टा च नासिके॥

शङ्खिनी चक्षुषोर्मध्ये श्रोत्रयोर्द्वारवासिनी।
कपोलौ कालिका रक्षेत्कर्णमूले तु शांकरी॥

नासिकायां सुगन्धा च उत्तरोष्ठे च चर्चिका।
अधरे चामृतकला जिह्वायां च सरस्वती॥

दन्तान् रक्षतु कौमारी कण्ठदेशे तु चण्डिका।
घण्टिकां चित्रघण्टा च महामाया च तालुके ॥

कामाक्षी चिबुकं रक्षेद् वाचं मे सर्वमङ्गला।
ग्रीवायां भद्रकाली च पृष्ठवंशे धनुर्धरी॥

नीलग्रीवा बहिःकण्ठे नलिकां नलकूबरी।
स्कन्धयोः खङ्‍गिनी रक्षेद् बाहू मे वज्रधारिणी॥

हस्तयोर्दण्डिनी रक्षेदम्बिका चाङ्गुलीषु च।
नखाञ्छूलेश्‍वरी रक्षेत्कुक्षौ रक्षेत्कुलेश्‍वरी॥

स्तनौ रक्षेन्महादेवी मनः शोकविनाशिनी।
हृदये ललिता देवी उदरे शूलधारिणी॥

नाभौ च कामिनी रक्षेद् गुह्यं गुह्येश्‍वरी तथा।
पूतना कामिका मेढ्रं गुदे महिषवाहिनी ॥

कट्यां भगवती रक्षेज्जानुनी विन्ध्यवासिनी।
जङ्घे महाबला रक्षेत्सर्वकामप्रदायिनी ॥

गुल्फयोर्नारसिंही च पादपृष्ठे तु तैजसी।
पादाङ्गुलीषु श्री रक्षेत्पादाधस्तलवासिनी॥

नखान् दंष्ट्राकराली च केशांश्‍चैवोर्ध्वकेशिनी।
रोमकूपेषु कौबेरी त्वचं वागीश्‍वरी तथा॥

रक्तमज्जावसामांसान्यस्थिमेदांसि पार्वती।
अन्त्राणि कालरात्रिश्‍च पित्तं च मुकुटेश्‍वरी॥ 

पद्मावती पद्मकोशे कफे चूडामणिस्तथा।
ज्वालामुखी नखज्वालामभेद्या सर्वसंधिषु॥

शुक्रं ब्रह्माणि मे रक्षेच्छायां छत्रेश्‍वरी तथा।
अहंकारं मनो बुद्धिं रक्षेन्मे धर्मधारिणी॥

प्राणापानौ तथा व्यानमुदानं च समानकम्।
वज्रहस्ता च मे रक्षेत्प्राणं कल्याणशोभना॥

रसे रुपे च गन्धे च शब्दे स्पर्शे च योगिनी।
सत्त्वं रजस्तमश्‍चैव रक्षेन्नारायणी सदा॥

आयू रक्षतु वाराही धर्मं रक्षतु वैष्णवी।
यशः कीर्तिं च लक्ष्मीं च धनं विद्यां च चक्रिणी॥

गोत्रमिन्द्राणि मे रक्षेत्पशून्मे रक्ष चण्डिके।
पुत्रान् रक्षेन्महालक्ष्मीर्भार्यां रक्षतु भैरवी॥

पन्थानं सुपथा रक्षेन्मार्गं क्षेमकरी तथा।
राजद्वारे महालक्ष्मीर्विजया सर्वतः स्थिता॥

रक्षाहीनं तु यत्स्थानं वर्जितं कवचेन तु।
तत्सर्वं रक्ष मे देवि जयन्ती पापनाशिनी॥

पदमेकं न गच्छेत्तु यदीच्छेच्छुभमात्मनः।
कवचेनावृतो नित्यं यत्र यत्रैव गच्छति॥

तत्र तत्रार्थलाभश्‍च विजयः सार्वकामिकः।
यं यं चिन्तयते कामं तं तं प्राप्नोति निश्‍चितम्।
परमैश्‍वर्यमतुलं प्राप्स्यते भूतले पुमान्॥

निर्भयो जायते मर्त्यः संग्रामेष्वपराजितः।
त्रैलोक्ये तु भवेत्पूज्यः कवचेनावृतः पुमान्॥

इदं तु देव्याः कवचं देवानामपि दुर्लभम् ।
यः पठेत्प्रयतो नित्यं त्रिसन्ध्यं श्रद्धयान्वितः॥

दैवी कला भवेत्तस्य त्रैलोक्येष्वपराजितः।
जीवेद् वर्षशतं साग्रमपमृत्युविवर्जितः॥

नश्यन्ति व्याधयः सर्वे लूताविस्फोटकादयः।
स्थावरं जङ्गमं चैव कृत्रिमं चापि यद्विषम्॥

अभिचाराणि सर्वाणि मन्त्रयन्त्राणि भूतले।
भूचराः खेचराश्‍चैव जलजाश्‍चोपदेशिकाः॥

सहजा कुलजा माला डाकिनी शाकिनी तथा।
अन्तरिक्षचरा घोरा डाकिन्यश्‍च महाबलाः॥

ग्रहभूतपिशाचाश्‍च यक्षगन्धर्वराक्षसाः।
ब्रह्मराक्षसवेतालाः कूष्माण्डा भैरवादयः ॥

नश्यन्ति दर्शनात्तस्य कवचे हृदि संस्थिते।
मानोन्नतिर्भवेद् राज्ञस्तेजोवृद्धिकरं परम्॥

यशसा वर्धते सोऽपि कीर्तिमण्डितभूतले।
जपेत्सप्तशतीं चण्डीं कृत्वा तु कवचं पुरा॥

यावद्भूमण्डलं धत्ते सशैलवनकाननम्।
तावत्तिष्ठति मेदिन्यां संततिः पुत्रपौत्रिकी॥

देहान्ते परमं स्थानं यत्सुरैरपि दुर्लभम्।
प्राप्नोति पुरुषो नित्यं महामायाप्रसादतः॥

लभते परमं रुपं शिवेन सह मोदते॥ॐ॥

इति देव्याः कवचं सम्पूर्णम्।

 श्री दुर्गा देवी कवच हिंदी में

durgajagdamba


श्री दुर्गा कवच (Durga Kawach) – दुर्गा कवच को देवी कवच (Devi Kawach) भी कहते हैं।

 श्री दुर्गा सप्तशती के पाठ से पहले दुर्गा कवच का पाठ किया जाता है। इस कवच का पाठ करने से देवी भगवती अपने भक्तों पर प्रसन्न होकर उनकी रक्षा करती हैं।


। ।  ऊँ नमश्चण्डिकायै  । ।

महर्षि मार्कण्डेयजी बोले हे पितामह! संसार में जो गुप्त हो और जो मनुष्यों की सब प्रकार से रक्षा करता हो और जो आपने किसी को आज तक बताया न हो, वह कवच मुझे बताइये। श्री ब्रह्माजी कहने लगे – अत्यंत गुप्त व् सब प्राणियों की भलाई करने वाला कवच मुझसे सुनो, प्रथम शैलपुत्री, दूसरी ब्रह्मचारिणी, तीसरी चन्द्र घण्टा, चौथी कुष्मांडा, पाँचवीं स्कंदमाता, छठी कात्यायनी, सातवीं कालरात्री, आठवीं महा गौरी तथा नवीं सिद्धि दात्री यह देवी की नौ मूर्तियाँ हैं। यह ‘नवदुर्गा ‘कहलाती हैं।

आग में जलता हुआ, रण में शत्रु से घिरा हुआ, विषम संकट में फँसा हुआ मनुष्य यदि दुर्गा के नाम का स्मरण करे तो उसको कभी भी हानि नहीं होती। रण में उसके लिए कुछ भी आपत्ति नहीं होती और न उसे किसी प्रकार का दुःख या डर ही होता है। हे देवी! जिसने श्रद्धा पूर्वक तुम्हारा स्मरण किया है उसकी वृद्धि होती है और जो तुम्हारा चिन्तन करते हैं उनकी तुम निःसंदेह रक्षा करने वाली हो, चामुण्डा प्रेत पर, वाराही भैंसे पर, रौद्री हाथी पर, वैष्णवी गरुड़ पर अपना आसन जमाती है माहेश्वरी बैल पर, कौमारी मोर पर और हाथ में कमल लिऐ हुए विष्णु प्रिया लक्ष्मी जी कमल के आसन पर विराजती हैं। बैल पर बैठी हुई ईश्वरि देवी ने श्वेत रूप धारण कर रखा है और सब प्रकार के आभूषणों से विभूषित ब्राह्मी देवी हंस पर बैठती है और इस प्रकार यह सब देवियाँ सब प्रकार के योगों से युक्त्त और अनेक प्रकार के रत्न धारण किऐ हुए हैं। भक्तों की रक्षा के लिये सम्पूर्ण देवियाँ रथ में बैठी तथा क्रोध में भरी हुई दिखाई देती हैं तथा चक्र, गदा शक्ति, हल और मूसल, खेटक और तोमर परशु तथा पाश, भाला और त्रिशूल एवं उत्तम शारंग आदि शास्त्रों को दैत्यों के नाश के लिये और भक्तों की रक्षा करने के लिये और देवताओं के कल्याण के लिये धारण किये हैं, हे महारोद्रे! अत्यन्त घोर पराक्रम, महान बल और महान उत्साह वाली देवी! तुमको मैं नमस्कार करता हूँ, हे देवी! तुम्हारा दर्शन दुर्लभ है, तथा आप शत्रुओं के भय को बढ़ाने वाली हैं।

हे जगदम्बिके! मेरी रक्षा करो। पूर्व दिशा में ऐन्द्री (इन्द्रशक्ति) मेरी रक्षा करें, अग्निकोण में अग्निशक्ति, दक्षिण दिशा में वाराही देवी तथा नैर्ऋत्यकोण में खड्गधारिणी देवी मेरी रक्षा करें,पश्चिम दिशा में वारुणी, वायुकोण में मृगवाहिनी,उत्तर दिशा में कौमारी और ईशानकोण में शूलधारिणी देवी मेरी रक्षा करे, ब्रह्माणि ऊपर की ओर से मेरी रक्षा करे और वैष्णवी देवी नीचे की ओर मेरी रक्षा करे और इसी प्रकार शव पर बैठी चामुण्डा देवी दसों दिशाओं में मेरी रक्षा करें। जया देवी आगे, विजया पीछे की ओर, अजिता बायीं ओर, अपराजिता दाहिनी ओर मेरी रक्षा करे, उद्योतिनी देवी शिखा की रक्षा करे तथा उमा मेरे मस्तक पर विराजमान होकर मेरी रक्षा करे, इसी प्रकार ललाट की मालाधरी देवी रक्षा करें और यशस्विनी देवी मेरी भौंहों का संरक्षण करे, भौंहों के मध्य भाग में त्रिनेत्रा, नथुनों की यमघण्टा देवी रक्षा करे, नेत्रों के मध्य में शंखिनी देवी और द्वारवासिनी देवी कानों की रक्षा करे। कपोलों की कालिका देवी और कानों के मूल भाग की भगवती शांकरी रक्षा करे, सुगन्धा नासिका में और चर्चिका ऊपर के ओंठ में, अमृतकला नीचे के ओंठ की, सरस्वती देवी जीभ की रक्षा करे, कौमारी देवी दाँतों की और चण्डिका कण्ठ प्रदेश की रक्षा करें, चित्रघण्टा गले की घाँटी की और  महामाया तालु की रक्षा करे, कामाक्षी देवी ठोढी की और सर्वमङ्गला मेरी वाणी की रक्षा करे। भद्रकाली गर्दन की और धनुर्धरी पीठ के मेरुदण्ड की रक्षा करे, कण्ठ के बाहरी भाग की नीलग्रीवा और कण्ठ की नली की नलकूबरी रक्षा करे। दोनों कंधों की खड्गिनी और वज्रधारिणी मेरी दोनों बाहों की रक्षा करे, दोनों हाथों की दण्डिनी और उँगलियों की रक्षा अम्बिका देवी करे ,शूलेश्वरी देवी सम्पूर्ण नखों की, कुलेश्वरी देवी मेरी कुक्षि की रक्षा करे, महादेवी दोनों स्तनों की और शोकविनाशिनी देवी मन की रक्षा करे, ललिता देवी हृदय की और शूलधारिणी उदर की रक्षा करे। कामिनी देवी नाभि की, गुह्येश्वरी गुह्यभाग की , पूतना और कामिका लिंग की और महिषवाहिनी गुदा की रक्षा करे, सम्पूर्ण कामनाओं को पूर्ण करने वाली महाबला देवी दोनों जंघाओं की रक्षा करे, विन्ध्यावासिनी दोनों घुटनों की और तैजसी देवी दोनों पाँवो के पृष्ठ भाग की, श्रीधरी पाँवो की उँगलियों की में, तलवासिनी तलुओं की, दंष्ट्राकराली देवी नखों की, ऊर्ध्वकेशिनी केशों की, बागेश्वरी वाणी की रक्षा करे, रोमावलियों के छिद्रों की कौबेरी और त्वचा की बागेश्वरी देवी रक्षा करे, पार्वती देवी रक्त, मज्जा, वसा, माँस, हड्डी  की रक्षा करे। आँतों की कालरात्रि देवी, पित्त की मुकुटेश्वरी देवी, पदमावती कमलकोष की, चूड़ामणि कफ की रक्षा करे, ज्वालामुखी नसों के जल की रक्षा करे, अभेद्या देवी शरीर के सब जोड़ों की रक्षा करे, ब्रह्माणी मेरे वीर्य की, छत्रेश्वरी देवी छाया की तथा धर्मधारिणी देवी मेरे अहंकार, मन और बुद्धि की रक्षा करे। प्राण, अपान, व्यान, उदान और समान की वज्रहस्ता देवी रक्षा करे, कल्याण शोभना मेरे प्राण की रक्षा करे। रस, रूप, गन्ध, शब्द और स्पर्श इन विषयों का अनुभव करते समय योगिनी देवी मेरी रक्षा करे तथा सत्त्वगुण, रजोगुण और तमोगुण की रक्षा नारायणी देवी करे। आयु की रक्षा वाराही देवी करे, वैष्णवी धर्म की तथा चक्रिणी देवी मेरे यश, कीर्ति, लक्ष्मी, धन, विद्या की रक्षा करे, इन्द्राणि मेरे शरीर की रक्षा करे और हे चण्डिके! आप मेरे पशुओं की रक्षा करिये। महालक्ष्मी मेरे पुत्रों की रक्षा करे और भैरवी मेरी पत्नी की रक्षा करे, राजा के दरबार में महालक्ष्मी तथा सब ओर व्याप्त रहने वाली विजया देवी चारों ओर से मेरी रक्षा करे। जो स्थान रक्षा से रहित हो और कवच में रह गया हो उसकी पापों का नाश करने वाली जयन्ती देवी रक्षा करे।

अपना शुभ चाहने वाले मनुष्य को बिना कवच के एक पल भी कहीं नहीं जाना चाहिए क्योंकि कवच रखने वाला मनुष्य जहाँ-जहाँ भी जाता हैं, वहाँ-वहाँ उसे अवश्य धन लाभ होता है तथा विजय प्राप्त करता है। वह जिसअभीष्ट वस्तु की इच्छा करता है, वह उसको इस कवच के प्रभाव से अवश्य मिलती है और वह इसी संसार में महा ऐश्वर्य को प्राप्त होता है, कवचधारी मनुष्य निर्भय होता है, और वह तीनों लोकों में माननीय होता है, देवी का यह कवच देवताओं के लिए भी दुर्लभ है। जो प्रतिदिन नियमपूर्वक तीनों संध्याओं के समय श्रद्धा के साथ इसका पाठ करता है उसे देव शक्ति प्राप्त होती है, वह तीनों लोकों को जीत सकता है तथा अकाल मृत्यु से रहित होकर सौ वर्षो तक जीवित रहता है, उसकी लूता, चर्मरोग, विस्फोटक, आदि समस्त व्याधियाँ समूल नष्ट हो जाती हैं और स्थावर, जंगम,तथा कृतिम विष दूर होकर उनका कोई असर नहीं होता है तथा समस्त अभिचारक प्रयोग और इस तरह के जितने यन्त्र, मन्त्र इत्यादि होते हैं इस कवच के हृदय में धारण करने पर नष्ट हो जाते हैं। इसके अतिरिक्त पृथ्वी पर विचरने वाले भूचर, नभचर, जलचर प्राणी उपदेश मात्र से, सिद्ध होने वाले निम्नकोटि के देवता, अपने जन्म से साथ प्रकट होने वाले देवता, कुल देवता, माला आदि डाकिनी, शाकिनी, अन्तरिक्ष में विचरने वाली अत्यन्त बलवती भयानक डाकिनियाँ,ग्रह, भूत, पिशाच, यक्ष, गन्धर्व, राक्षस, ब्रह्मराक्षस, बेताल, कूष्माण्ड और भैरव आदि अनिष्टकारक देवता भी उस मनुष्य को जिसने कि अपने हृदय में यह कवच धारणकिया हुआ है, देखते ही भाग जाते हैं, इस कवच के धारण करने से मन और तेज बढ़ता है। जो मनुष्य इस कवच का पाठ करके उसके पश्चात सप्तशती चंडीका पाठ करता है उसका यश जगत में विख्यात होता है, और जब तक वन, पर्वत और काननादि इस भूमण्डल पर हैं,तब तक यहाँ पुत्र-पौत्र आदि संतान परम्परा बनी रहती है, फिर देहान्त होने पर ऐसा मनुष्य परमपद को प्राप्त होता है, जो देवतोओं के लिए भी दुर्लभ है और अंत में सुन्दर रूप को धारण करके भगवान शंकर के साथ आनन्द करता हुआ परम मोक्ष को प्राप्त होता है।


दुर्गा कवच समाप्त 



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