Thursday, December 19, 2024

असर उस को ज़रा नहीं होता Asar Usko Zara Nahi Hota Momin Khan Momin Ghazal

असर उस को ज़रा नहीं होता
रंज राहत-फ़ज़ा नहीं होता
बेवफ़ा कहने की शिकायत है
तो भी वादा-वफ़ा नहीं होता
ज़िक्र-ए-अग़्यार से हुआ मा’लूम
हर्फ़-ए-नासेह बुरा नहीं होता
किस को है ज़ौक़-ए-तल्ख़-कामी लेक
जंग बिन कुछ मज़ा नहीं होता
तुम हमारे किसी तरह न हुए
वर्ना दुनिया में क्या नहीं होता
उस ने क्या जाने क्या किया ले कर
दिल किसी काम का नहीं होता
इम्तिहाँ कीजिए मिरा जब तक
शौक़ ज़ोर-आज़मा नहीं होता
एक दुश्मन कि चर्ख़ है न रहे
तुझ से ये ऐ दुआ नहीं होता
आह तूल-ए-अमल है रोज़-फ़ुज़ूँ
गरचे इक मुद्दआ नहीं होता
तुम मिरे पास होते हो गोया
जब कोई दूसरा नहीं होता
हाल-ए-दिल यार को लिखूँ क्यूँकर
हाथ दिल से जुदा नहीं होता
रहम कर ख़स्म-ए-जान-ए-ग़ैर न हो
सब का दिल एक सा नहीं होता
दामन उस का जो है दराज़ तो हो
दस्त-ए-आशिक़ रसा नहीं होता
चारा-ए-दिल सिवाए सब्र नहीं
सो तुम्हारे सिवा नहीं होता
क्यूँ सुने अर्ज़-ए-मुज़्तर-ए-‘मोमिन’
सनम आख़िर ख़ुदा नहीं होता

 

 

No comments:

Post a Comment

Featured post

यूँही बे-सबब न फिरा करो कोई शाम घर में रहा करो Yunhi Be-Sabab Na Fira Karo Koi Bashir Badr Ghazal

यूँही बे-सबब न फिरा करो कोई शाम घर में रहा करो वो ग़ज़ल की सच्ची किताब है उसे चुपके चुपके पढ़ा करो कोई हाथ भी न मिलाएगा जो गले मिलोगे तपाक स...