वक़्त-ए-पीरी शबाब की बातें Waqt-E-Peeri Shabaab Ki Baaten Sheikh Ibrahim Zauq Ghaza
वक़्त-ए-पीरी शबाब की बातें
ऐसी हैं जैसे ख़्वाब की बातें
फिर मुझे ले चला उधर देखो
दिल-ए-ख़ाना-ख़राब की बातें
वाइज़ा छोड़ ज़िक्र-ए-नेमत-ए-ख़ुल्द
कह शराब-ओ-कबाब की बातें
मह-जबीं याद हैं कि भूल गए
वो शब-ए-माहताब की बातें
हर्फ़ आया जो आबरू पे मिरी
हैं ये चश्म-ए-पुर-आब की बातें
सुनते हैं उस को छेड़ छेड़ के हम
किस मज़े से इताब की बातें
जाम-ए-मय मुँह से तू लगा अपने
छोड़ शर्म ओ हिजाब की बातें
मुझ को रुस्वा करेंगी ख़ूब ऐ दिल
ये तिरी इज़्तिराब की बातें
जाओ होता है और भी ख़फ़क़ाँ
सुन के नासेह जनाब की बातें
क़िस्सा-ए-ज़ुल्फ़-ए-यार दिल के लिए
हैं अजब पेच-ओ-ताब की बातें
ज़िक्र क्या जोश-ए-इश्क़ में ऐ ‘ज़ौक़’
हम से हों सब्र ओ ताब की बातें
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