Thursday, March 8, 2018

बरसात / गरज-गरज शोर करत

गरज-गरज शोर करत काली घटा, जिया न लागे हमार।

बिजली बन कर चमकती मेरे मन की आग।
आहें मेरी बन गईं न्यारे-न्यारे राग।।
सावन की भीगी है रात, सखी सुन री मेरी तू बात।
है नैनों में आँसुओं की धार, जिया न लागे हमार।। गरज...

मेरे आँसू बरसते लोग कहें बरसात।
पल-पल आवत याद है पिया मिलन की रात।।
कोयल की दरदीली तान सखि दिल में मारत बान।
अब कैसे हो मुझ को करार, जिया न लागे हमार।। गरज...

No comments:

Post a Comment

Featured post

यूँही बे-सबब न फिरा करो कोई शाम घर में रहा करो Yunhi Be-Sabab Na Fira Karo Koi Bashir Badr Ghazal

यूँही बे-सबब न फिरा करो कोई शाम घर में रहा करो वो ग़ज़ल की सच्ची किताब है उसे चुपके चुपके पढ़ा करो कोई हाथ भी न मिलाएगा जो गले मिलोगे तपाक स...