शनिवार की आरती / आरती
जय-जय रविनन्दन जय दुःख भंजन
जय-जय शनि हरे।टेक॥
जय भुजचारी, धारणकारी, दुष्ट दलन।१॥
तुम होत कुपित नित करत दुखित, धनि को निर्धन।२॥
तुम घर अनुप यम का स्वरूप हो, करत बंधन।३॥
तब नाम जो दस तोहि करत सो बस, जो करे रटन।४॥
महिमा अपर जग में तुम्हारे, जपते देवतन।५॥
सब नैन कठिन नित बरे अग्नि, भैंसा वाहन।६॥
प्रभु तेज तुम्हारा अतिहिं करारा, जानत सब जन।७॥
प्रभु शनि दान से तुम महान, होते हो मगन।८॥
प्रभु उदित नारायन शीश, नवायन धरे चरण।
जय शनि हरे।
जय-जय शनि हरे।टेक॥
जय भुजचारी, धारणकारी, दुष्ट दलन।१॥
तुम होत कुपित नित करत दुखित, धनि को निर्धन।२॥
तुम घर अनुप यम का स्वरूप हो, करत बंधन।३॥
तब नाम जो दस तोहि करत सो बस, जो करे रटन।४॥
महिमा अपर जग में तुम्हारे, जपते देवतन।५॥
सब नैन कठिन नित बरे अग्नि, भैंसा वाहन।६॥
प्रभु तेज तुम्हारा अतिहिं करारा, जानत सब जन।७॥
प्रभु शनि दान से तुम महान, होते हो मगन।८॥
प्रभु उदित नारायन शीश, नवायन धरे चरण।
जय शनि हरे।
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