सखिन्ह मध्य सिय सोहति कैसे / भजन

संग सखीं सुदंर चतुर गावहिं मंगलचार।
गवनी बाल मराल गति सुषमा अंग अपार॥२६३॥

सखिन्ह मध्य सिय सोहति कैसे। छबिगन मध्य महाछबि जैसें॥
कर सरोज जयमाल सुहाई। बिस्व बिजय सोभा जेहिं छाई॥१॥

तन सकोचु मन परम उछाहू। गूढ़ प्रेमु लखि परइ न काहू॥
जाइ समीप राम छबि देखी। रहि जनु कुँअरि चित्र अवरेखी॥२॥

चतुर सखीं लखि कहा बुझाई। पहिरावहु जयमाल सुहाई॥
सुनत जुगल कर माल उठाई। प्रेम बिबस पहिराइ न जाई॥३॥

सोहत जनु जुग जलज सनाला। ससिहि सभीत देत जयमाला॥
गावहिं छबि अवलोकि सहेली। सियँ जयमाल राम उर मेली॥४॥

Comments

Popular Lyrics / Posts

आ लौट के आजा हनुमान तुम्हे श्री राम बुलाते हैं aa laut ke aaja hanuman tumheshree ram bulate hain

तेरी मुरली की धुन सुनने मैं बरसाने से आयी हूँ

जिस भजन में राम का नाम ना हो jis bhajan me ram ka naam na ho us bhajan ko gana na chahiye