Saturday, May 23, 2020

सोइ रसना, जो हरि-गुन गावैं / भजन

सोइ रसना, जो हरि-गुन गावै।
नैननिकी छबि यहै चतुरता, जो मुकुन्द मकरन्दहि ध्यावै॥१॥

निर्मल चित्त तो सोई साँचौ,कृष्ण बिना जिहि और न भावै।
स्त्रवनन की जू यहै अधिकाई, सुनि हरि कथा सुधारस पावै॥२॥

कर तेई जे स्यामहिं सेवैं, चरननि चलि वृन्दावन जावै।
सूरदास जैयै बलि वाके, जो हरि जू सौं प्रीति बढ़ावै॥३॥

No comments:

Post a Comment

Featured post

यूँही बे-सबब न फिरा करो कोई शाम घर में रहा करो Yunhi Be-Sabab Na Fira Karo Koi Bashir Badr Ghazal

यूँही बे-सबब न फिरा करो कोई शाम घर में रहा करो वो ग़ज़ल की सच्ची किताब है उसे चुपके चुपके पढ़ा करो कोई हाथ भी न मिलाएगा जो गले मिलोगे तपाक स...