श्री संकटमोचन हनुमानाष्टक / चालीसा
मत्तगयन्द छन्द
बाल समय रबि भक्ष लियो तब तीनहूँ लोक भयो अँधियारो।
ताहि सों त्रास भयो जग को यह संकट काहू सों जात न टारो।।
देवन आनि करी बिनती तब छाँडि़ दियो रबि कष्ट निवारो।
को नहिं जानत है जगमें कपि संकट मोचन नाम तिहारो।। 1।।
बालि की त्रास कपीस बसै गिरि जात महाप्रभु पंथ निहारो।
चैंकि महा मुनि साप दियो तब चाहिय कौन बिचार बिचारो।।
कै द्विज रूप लिवाय महाप्रभु सो तुम दास को सोक निवारो।
को नहिं जानत है जगमें कपि संकट मोचन नाम तिहारो।। 2।।
अंगद के सँग लेन गये सिय खोज कपीस यह बैन उचारो।
जीवत ना बचिहौ हम सो जु बिना सुधि लाए इहाँ पगु धारो।।
हेरि थके तट सिंधु सबै तब लाय सिया-सुधि प्रान उबारो।
को नहिं जानत है जगमें कपि संकट मोचन नाम तिहारो।। 3।।
रावन त्रास दई सिय को सब राक्षसि सों कहि सोक निवारो।
ताहि समय हनुमान महाप्रभु जाय महा रजनीचर मारो।।
चाहत सीय असोक सों आगि सु दै प्रभु मुद्रिका सोक निवारो।
को नहिं जानत है जगमें कपि संकट मोचन नाम तिहारो।। 4।।
बान लग्यो उर लछिमन के तब प्रान तजे सुत रावन मारो।
लै गृह बैद्य सुषेन समेत तबै गिरि द्रोन सु बीर उपारो।।
आनि सजीवन हाथ दई तब लछिमन के तुम प्रान उबारो।
को नहिं जानत है जगमें कपि संकट मोचन नाम तिहारो।। 5।।
रावन जुद्ध अजान कियो तब नाग कि फाँस सबै सिर डारो।
श्रीरघुनाथ समेत सबै दल मोह भयो यह संकट भारो।।
आनि खगेस तबै हनुमान जु बंधन काटि सुत्रास निवारो।
को नहिं जानत है जगमें कपि संकट मोचन नाम तिहारो।। 6।।
बंधु समेत जबै अहिरावन लै रघुनाथ पाताल सिधारो।
देबिहिं पूजि भली बिधि सों बलि देउ सबै मिलि मंत्र बिचारो।।
जाय सहाय भयो तब ही अहिरावन सैन्य समेत सँहारो।
को नहिं जानत है जगमें कपि संकट मोचन नाम तिहारो।। 7।।
काज किये बड़ देवन के तुम बीर महाप्रभु देखि बिचारो।
कौन सो संकट मोर गरीब को जो तुमसों नहिं जात है टारो।।
बेगि हरो हनुमान महाप्रभु जो कछु संकट होय हमारो।
को नहिं जानत है जगमें कपि संकट मोचन नाम तिहारो।। 2।।
।। दोहा।।
लाल देह लाली लसे, अरू धरि लाल लँगूर।
बज्र देह दावन दलन, जय जय जय कपि सूर।।
।। इति संकटमोचन हनुमानाष्टक सम्पूर्ण।।
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