अब देखो रामजी ध्वजा फहराई।
अब देखो रामजी ध्वजा फहराई।
डलकत ढाल, फरूकत नेजा, गरद चढी असमानी।
नल और नील, बाली सुत अंगद हनुमान अगवानी।।
कहत मंदोदरसुन पिया रावण, आ काँई कुबद कमाई।
उनकी जानकी ने थे हर ल्याया, बे चड आसी दोन्यू भाई।।
तु क्यूँ डरप नार मंदोदर, पीहर देऊँ पहुँचाई।
एक बार सनमुख होय लड़स्यू, जुग जुग होसि बड़ाई।।
तिरिया जात अकल की ओछी, उनकी करत बड़ाई।
भूमंडल से पकड़ मँगाऊँ, वे तपसी दोन्यू भाई।।
मेगनाद सा पुत्र हमारे, कुम्भकर्ण सा बल भाई।
लँक सरीसा कोट हमारे, सत समुद्र आडी खाई।।
हनुमान सा पयक उनके, लक्ष्मण सा बल भाई।
जलती अग्न मेन कूद पड़त है, कोट गिने ना आडी खाई।।
एक लख पुत्र सवा लख नाती, मौत आपनी आई।
अग्र के स्वामी गढ़ लंका न घेरी, अजहूँ ना चेत्यो अभिमानी।।
लंका जीत अयोध्या में आये घर घर बँटत बधाई।
मात कौशल्या करत आरतो तुलसीदास जस गाई।।
डलकत ढाल, फरूकत नेजा, गरद चढी असमानी।
नल और नील, बाली सुत अंगद हनुमान अगवानी।।
कहत मंदोदरसुन पिया रावण, आ काँई कुबद कमाई।
उनकी जानकी ने थे हर ल्याया, बे चड आसी दोन्यू भाई।।
तु क्यूँ डरप नार मंदोदर, पीहर देऊँ पहुँचाई।
एक बार सनमुख होय लड़स्यू, जुग जुग होसि बड़ाई।।
तिरिया जात अकल की ओछी, उनकी करत बड़ाई।
भूमंडल से पकड़ मँगाऊँ, वे तपसी दोन्यू भाई।।
मेगनाद सा पुत्र हमारे, कुम्भकर्ण सा बल भाई।
लँक सरीसा कोट हमारे, सत समुद्र आडी खाई।।
हनुमान सा पयक उनके, लक्ष्मण सा बल भाई।
जलती अग्न मेन कूद पड़त है, कोट गिने ना आडी खाई।।
एक लख पुत्र सवा लख नाती, मौत आपनी आई।
अग्र के स्वामी गढ़ लंका न घेरी, अजहूँ ना चेत्यो अभिमानी।।
लंका जीत अयोध्या में आये घर घर बँटत बधाई।
मात कौशल्या करत आरतो तुलसीदास जस गाई।।
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