देशभक्ति की कविताओं का संकलन Deshbhakti ki Kavita

 हम होंगे कामयाब


होंगे कामयाब,

हम होंगे कामयाब एक दिन

मन में है विश्वास, पूरा है विश्वास

हम होंगे कामयाब एक दिन।


हम चलेंगे साथ-साथ

डाल हाथों में हाथ

हम चलेंगे साथ-साथ, एक दिन

मन में है विश्वास, पूरा है विश्वास

हम चलेंगे साथ-साथ एक दिन।


होगी शांति चारों ओर

होगी शांति चारों ओर, एक दिन

मन में है विश्वास, पूरा है विश्वास

होगी शांति चारों ओर एक दिन।


नहीं डर किसी का आज

नहीं डर किसी का आज एक दिन

मन में है विश्वास, पूरा है विश्वास

नहीं डर किसी का आज एक दिन।


- गिरिजा कुमार माथुर



वंदे मातरम


वंदे मातरम,

वंदे मातरम

सुजला सुफला मलयज-शीतलाम

शश्य-शामलाम मातरम

वंदे मातरम


शुभ्र-ज्योत्स्ना-पुलकित यामिनी

फुललकुसुमित-द्रुमदल शोभिनी

सुहासिनीं सुमधुर भाषिनीं

सुखदां वरदां मातरम

वंदे मातरम


- बंकिमचंद्र चट्टोपाध्याय


मेरे देश की धरती


मेरे देश की धरती सोना उगले उगले हीरे मोती

मेरे देश की धरती

बैलों के गले में जब घुँघरू जीवन का राग सुनाते हैं

ग़म कोस दूर हो जाता है खुशियों के कंवल मुसकाते हैं

सुन के रहट की आवाज़ें यों लगे कहीं शहनाई बजे

आते ही मस्त बहारों के दुल्हन की तरह हर खेत सजे


मेरे देश की धरती सोना उगले उगले हीरे मोती

मेरे देश की धरती


जब चलते हैं इस धरती पे हल ममता अँगड़ाइयाँ लेती है

क्यों ना पूजे इस माटी को जो जीवन का सुख देती है

इस धरती पे जिसने जनम लिया उसने ही पाया प्यार तेरा

यहाँ अपना पराया कोई नही हैं सब पे माँ उपकार तेरा


मेरे देश की धरती सोना उगले उगले हीरे मोती

मेरे देश की धरती

ये बाग़ हैं गौतम नानक का खिलते हैं अमन के फूल यहाँ

गांधी, सुभाष, टैगोर, तिलक ऐसे हैं चमन के फूल यहाँ

रंग हरा हरिसिंह नलवे से रंग लाल है लाल बहादुर से

रंग बना बसंती भगतसिंह रंग अमन का वीर जवाहर से


मेरे देश की धरती सोना उगले उगले हीरे मोती

मेरे देश की धरती


- गुलशन बावरा


चल मरदाने


चल मरदाने, सीना ताने,

हाथ हिलाते, पाँव बढ़ाते,

मन मुसकाते, गाते गीत।

एक हमारा देश, हमारा

वेश, हमारी कौम, हमारी

मंज़िल, हम किससे भयभीत।


चल मरदाने, सीना ताने,

हाथ हिलाते, पाँव बढ़ाते,

मन मुसकाते, गाते गीत।


हम भारत की अमर जवानी,

सागर की लहरें लासानी,

गंग-जमुन के निर्मल पानी,

हिमगिरि की ऊँची पेशानी,

सब के प्रेरक, रक्षक, मीत।


चल मरदाने, सीना ताने,

हाथ हिलाते, पाँव बढ़ाते,

मन मुसकाते, गाते गीत।


जग के पथ पर जो न रुकेगा,

जो न झुकेगा, जो न मुड़ेगा,

उसका जीवन उसकी जीत।


चल मरदाने, सीना ताने,

हाथ हिलाते, पाँव बढ़ाते,

मन मुसकाते, गाते गीत।


- हरिवंश राय बच्चन



आज तिरंगा फहराता है


आज तिरंगा फहराता है अपनी पूरी शान से।

हमें मिली आज़ादी वीर शहीदों के बलिदान से।।

आज़ादी के लिए हमारी लंबी चली लड़ाई थी।

लाखों लोगों ने प्राणों से कीमत बड़ी चुकाई थी।।

व्यापारी बनकर आए और छल से हम पर राज किया।

हमको आपस में लड़वाने की नीति अपनाई थी।।


हमने अपना गौरव पाया, अपने स्वाभिमान से।

हमें मिली आज़ादी वीर शहीदों के बलिदान से।।


गांधी, तिलक, सुभाष, जवाहर का प्यारा यह देश है।

जियो और जीने दो का सबको देता संदेश है।।

प्रहरी बनकर खड़ा हिमालय जिसके उत्तर द्वार पर।

हिंद महासागर दक्षिण में इसके लिए विशेष है।।


लगी गूँजने दसों दिशाएँ वीरों के यशगान से।

हमें मिली आज़ादी वीर शहीदों के बलिदान से।।


हमें हमारी मातृभूमि से इतना मिला दुलार है।

उसके आँचल की छैयाँ से छोटा ये संसार है।।

हम न कभी हिंसा के आगे अपना शीश झुकाएँगे।

सच पूछो तो पूरा विश्व हमारा ही परिवार है।।


विश्वशांति की चली हवाएँ अपने हिंदुस्तान से।

हमें मिली आज़ादी वीर शहीदों के बलिदान से।।


सजीवन मयंक



१५ अगस्त १९४७


चिर प्रणम्य यह पुण्य अह्न जय गाओ सुरगण,

आज अवतरित हुई चेतना भू पर नूतन!

नवभारत, फिर चीर युगों का तिमिर आवरण,

तरुण अरुण-सा उदित हुआ परिदीप्त कर भुवन!

सभ्य हुआ अब विश्व, सभ्य धरणी का जीवन,

आज खुले भारत के संग भू के जड़ बंधन!

शांत हुआ अब युग-युग का भौतिक संघर्षण

मुक्त चेतना भारत की यह करती घोषण!


आम्र मौर जाओ हे, कदली स्तंभ बनाओ,

पावन गंगा जल भर मंगल-कलश सजाओ!

नव अशोक पल्लव के बंदनवार बँधाओ,

जय भारत गाओ, स्वतंत्र जय भारत गाओ!

उन्नत लगता चंद्रकला-स्मित आज हिमाचल,

चिर समाधि से जाग उठे हों शंभु तपोज्ज्वल!

लहर-लहर पर इंद्रधनुष-ध्वज फहरा चंचल

जय-निनाद करता, उठ सागर, सुख से विह्वल!


धन्य आज का मुक्ति-दिवस, गाओ जन-मंगल,

भारत-लक्ष्मी से शोभित फिर भारत-शतदल!

तुमुल जयध्वनि करो, महात्मा गांधी की जय,

नव भारत के सुज्ञ सारथी वह नि:संशय!

राष्ट्रनायकों का हे पुन: करो अभिवादन,

जीर्ण जाति में भरा जिन्होंने नूतन जीवन!

स्वर्ण शस्य बाँधों भू-वेणी में युवती जन,

बनो वज्र प्राचीर राष्ट्र की, वीर युवकगण!


लोह संगठित बने लोक भारत का जीवन,

हों शिक्षित संपन्न क्षुधातुर नग्न भग्न जन!

मुक्ति नहीं पलती दृग-जल से हो अभिसिंचित,

संयम तप के रक्त-स्वेद से होती पोषित!

मुक्ति माँगती कर्म-वचन-मन-प्राण-समर्पण,

वृद्ध राष्ट्र को, वीर युवकगण, दो निज यौवन!

नव स्वतंत्र भारत हो जगहित ज्योति-जागरण,

नवप्रभात में स्वर्ण-स्नात हो भू का प्रांगण!


नव-जीवन का वैभव जाग्रत हो जनगण में,

आत्मा का ऐश्वर्य अवतरित मानव-मन में!

रक्त-सिक्त धरणी का हो दु:स्वप्न-समापन,

शांति-प्रीति-सुख का भू स्वर्ण उठे सुर मोहन!

भारत का दासत्व दासता थी भू-मन की,

विकसित आज हुई सीमाएँ जन-जीवन की!

धन्य आज का स्वर्ण-दिवस, नव लोक जागरण,

नव संस्कृति आलोक करे जन भारत वितरण!


नव जीवन की ज्वाला से दीपित हों दिशि क्षण,

नव मानवता में मुकुलित

 धरती का जीवन!


- सुमित्रानंदन पंत







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