Saturday, November 2, 2024

सोहर / अवधी

 

चलो चली सखिया सहेलिया त हिलि मिलि सब चली हो

सखी जमुना का निर्मल नीर कलस भरि लाई हो


कोउ सखी हाथ मुख धोवें त कोउ सखी घैला बोरै हो

अरे जसुदा जी ठाढ़ी ओनावै कन्हैया कतौ रोवें हो


घैला त धरिन घिनूची पर गेडुरी तखत पर हो

जसुदा झपटि के चढ़ी महलिया कन्हैया कहाँ रोवै हो


चलो चली सखिया सहेलिया त हिलि मिलि सब चली हो

सखी जसुदा के बिछुड़े कन्हैया उन्हें समुझैबे हो


कई लियो तेलवा फुलेलवा आँखिन केरा कजरा हो

जसुदा कई लियो सोरहो सिंगार कन्हैया जानो नहीं भये हो


नीर बहे दूनो नैन दुनहु थन दूधा बहे हो

सखी भीजै चुनरिया का टोक मैं कैसे जानू नहीं भये हो

अन्य अवधी लोकगीत 

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