Saturday, November 2, 2024

चैत मास तिथि नौमी, त रामा जग्य रोपन्ही रे / अवधी

 चैत मास तिथि नौमी, त रामा जग्य रोपन्ही रे

अरे बिनु सितला जज्ञि सून, त को जज्ञि देखै रे


सोने के खडउन्हा बशिष्ट धरे, सभवा अरज करैं रे

रामा सीता का लाओ बोलाई, त को जज्ञि देखै रे


अगवां के घोड़वा बसिष्ठ मुनि, पिछवां के लछिमन रे

दुइनो हेरैं लागे ऋषि के मड़ईयाँ, जहां सीता ताप करैं रे


नहाई धोई सीता ठाढ़ी भई, झरोखन चित गवा रे

ऋषि आवत गुरु जी हमार, औ लछिमन देवर रे


गंगा से जल भर लाइन, औ थार परोसें रे

सीता गुरु जी के चरण पखारें, त माथे लगावैं रे


इतनी अकिल सीता तुम्हरे, जो सब गुन आगरि रे

सीता अस के तज्यो अजोध्या, लौटि नहि चितयू रे


काह कहौं मैं गुरु जी, कहत दुःख लागे सुनत दुःख लागे रे

गुरु इतनी सांसत रामा डारैं, की सपन्यो न आवैं रे

ऐसा त्याग किया राम ने मेरा की सपने में भी नहीं आते


सुधि करैं रामा वही दिनवां, की जौने दिना ब्याह करैं रे

रामा अस्सी मन केरा धनुस, त निहुरी उठावैं रे


सुधि करैं रामा वही दिनवां, की जौने दिना गौना लायें रे

रामा फुल्वन सेजिया सजावें, हिरदय मा लई के स्वावै रे


सुधि करैं रामा वही दिनवां, की जौने दिना बन चले रे

रामा हमका लिहिन संग साथ, साथ नहीं छोडें रे


सवना भादौना क रतिया, मैं गरुए गरभ से रे

गुरु ऊई रामा घर से निकारें, लौटि नहीं चितवहि रे?


गुरु जी का कहना न मेटबे, पैग दस चलबे रे

गुरु फाटै जो धरती समाबे, अजोध्या नहीं जाबै रे

गुरु फेर हियें चली औबे, राम नहीं देखबै रे

अन्य अवधी लोकगीत 

No comments:

Post a Comment

Featured post

यूँही बे-सबब न फिरा करो कोई शाम घर में रहा करो Yunhi Be-Sabab Na Fira Karo Koi Bashir Badr Ghazal

यूँही बे-सबब न फिरा करो कोई शाम घर में रहा करो वो ग़ज़ल की सच्ची किताब है उसे चुपके चुपके पढ़ा करो कोई हाथ भी न मिलाएगा जो गले मिलोगे तपाक स...