कब के भये बैरागी कबीर जी,
कब के भये बैरागी
आदि अंत से आएँ गोरख जी,
जब के भये बैरागी
(१) जल्मी नही रे जब का जलम हमारा,
नही कोई जल्मी को जायो
पाव धरण को धरती नही थी
आदी अंत लव लागी...
कबीर जी...
(२) धुन्दाकार था ऐ जग मेरा,
वही गुरु न वही चेला
जब से हमने मुंड मुंडायाँ
आप ही आये अकेला...
कबीर जी...
(३) सतयुग पेरी पाव पवड़ियाँ,
द्वापूर लीयाँ खड़ाऊ
त्रैतायुग म अड़ बंद कसियाँ
कलू म फिरीयाँ नव खंडा…..
कबीर जी...
(४) राम भया जब टोपी सिलाई,
गोरख भया जब टीका
जब से गया हो जलम फेरा
ब्रम्हा मे सुरत लगाई...
कबीर जी...
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