Friday, November 1, 2024

चन्दरमा निरमळई रात / निमाड़ी लोकगीत

 चन्दरमा निरमळई रात,

तारो कँवऽ उँगसे?

तारो ऊँगसे पाछली रात,

पड़ोसेण जागसे जी।।

धमकसे मही केरी माट,

धमकसे घट्टीलो जी,

ईराजी घर आवसे,

रनुनाई खऽ आरती जी।।

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