Friday, November 1, 2024

उठू-उठू सुन्दरि जाइ छी विदेश / मैथिली लोकगीत

उठू-उठू सुन्दरि जाइ छी विदेश
सपनहुँ रूप नहि भेटत उदेश
से सुनि सुन्दरि उठली चेहाय
पहुक वचन सुनि बैसली झमाय
उठइत उठली, बैसली मान मारि
विरहक मातलि, खसली हिया हारि
कहथि रमापति सुनू ब्रज नारि
धैरज धय रहु, भेटत मुरारि

No comments:

Post a Comment

Featured post

यूँही बे-सबब न फिरा करो कोई शाम घर में रहा करो Yunhi Be-Sabab Na Fira Karo Koi Bashir Badr Ghazal

यूँही बे-सबब न फिरा करो कोई शाम घर में रहा करो वो ग़ज़ल की सच्ची किताब है उसे चुपके चुपके पढ़ा करो कोई हाथ भी न मिलाएगा जो गले मिलोगे तपाक स...