दुर-दुर नारद एहन बर लयलौं कोना / मैथिली लोकगीत
दुर-दुर नारद एहन बर लयलौं कोना
पढ़ि पोथी ओ पतरा बिसरलौं कोना
बसहा पीठ छथि असवार, कर त्रिशूल-मुन्डमाल
पैर फाटल बेमाय, पेट उगल, सटकल गाल
तीन अँखिया बकर-बकर तकै छथि कोना
दुर-दुर नारद एहन बर लयलौं कोना
श्वेत केश, दाँत टुटल, कम्पवात गातमे
भूत ओ पिशाच साजि लयला बरियातमे
सखि हे नाकहीन, कानहीन दाँतटुटल छनि कोना
घर-द्वार नहि छनि केयो नहि संगमे
आँक-धथूर-गाँजा, रूचि सदा भंगमे
सखि हे तनिका संग गौरी धीया रहती कोना
सुन्दर सुकुमारि गौरी छथि उमंगमे
सखि सहेली संग खेलैत छथि सुसंगमे
सखि हे तिनका एहन बर करबनि कोना
अन्य मैथिली लोकगीत
हम ने जीअब बिनु राम हे जननी, हम ने जीअब बिनु राम / मैथिली लोकगीत
नया शहर कलकत्ता हो राजा, जहाँ बिराजे महाकाली / मैथिली लोकगीत
गे माई हम नहि शिव सँ गौरी बिआहब, मोर गौरी रहती कुमारी / मैथिली लोकगीत
दुर-दुर छीया ए छीया, एहन बौराहा बर संग जयती कोना धीया / मैथिली लोकगीत
ना जायब, ना जायब, ना जायब हे सखि गौरी अंगनमा / मैथिली लोकगीत
Comments
Post a Comment